कागजों में साहूकारा का हो गया अंत, पर सूदखोरों के जाल में अभी भी फंसे हैं लोग जिले के 208 साहूकारों के लाइसेंस निरस्त हो चुके हैं, अफसरों की नजर में जिले में कोई सूदखोर नहीं

उत्तर प्रदेश देवरिया
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शेर मोहम्मद देवरिया। “लेखा जौ जौ, बक्सीस सौ सौ। ये लाइनें आपको साहूकारा और मुंशी प्रेमचंद की कहानी सवा शेर गेहूं की याद ताजा कर देगी। दशकों पहले यह कहानी जरूर लिखी गई थी, लेकिन ग्रामीण अंचलों में आज भी ऐसे बेबस शंकर या हल्कू मिल जाएंगे, जो साहूकारों और फाइनेंस कंपनियों के कर्ज के जाल में फंसकर अपना सब कुछ गवां बैठे हैं। बेटे इंद्रजीत के इलाज के लिए कर्ज लेने वाले रुद्रपर इलाके के बैदा कोड़रा निवासी दुर्गा पासवान ही गरीब क्यों, शहर में भी लोग केवल ब्याज-ब्याज में अपनी मूल संपत्ति भी गवां चुके हैं। जबकि जिले के 208 साहूकारों के लाइसेंस निरस्त हो चुके हैं। अफसरों की नजर में कोई सूदखोर जिले में नहींं। पर हकीकत तो यह है कि गांव-गांव कर्ज के चक्कर में लोग फंस कर गाढ़ी कमाई ब्याज में चुकता कर रहे हैं। इसके बाद भी कर्ज से पीछा नहीं छूट रहा है।

इसी साल अप्रैल माह में साहूकारों से मुक्ति दिलाने के लिए साहूकारा अधिनियम समाप्त कर दिया गया। इसके तहत साहूकारों के लाइसेंस स्वत: ही निरस्त हो चुके हैं। यह अधिनियम उस समय से था, जब 1976 में बैंकिंग सेवाओं तथा ऑनलाइन बैंकिंग और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का लाभ दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों व आम लोगों के पास नहीं पहुंच पाता था। अधिनियम कागजों में तो समाप्त हो गया है, लेकिन कर्ज बांट कर ब्याज दर ब्याज वसूलने का खेल बंद नहीं हुआ है। अभी निजी फाइनेंस कंपनियों के एजेंट गांवों में समूह का गठन कर लोगों को कर्ज बांट रहे हैं। इसके बदले में 18 प्रतिशत से 36 प्रतिशत ब्याज वसूला जा रहा है। शहर में ही कई ऐसे सूदखोर हैं, जो छोटे दुकानदारों से ब्याज की रकम वसूल करते हैं। इतना नहीं ब्याज वसूली के नाम पर दबंगई भी दिखाई जाती है। अगर कोई रुपये देने में आनाकानी करता है तो उसकी पिटाई भी कर देते हैं।

डीएम ने दर्ज कराया था केस, खेत भी छुड़वाया था

केस-1

27 मई को मईल थाना परिसर में आयोजित समाधान दिवस पर तत्कालीन जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह से नरियांव गांव निवासी शिवदास गुहार लगाई थी कि साठ हजार रुपये लिए दस साल पहले एक व्यक्ति से लिए थे। एक लाख बीस हजार रुपये ब्याज सहित पांच साल पहले दे दिए, लेकिन वह मेरा नौ कट्ठा जमीन छोड़ नहीं रहा है। जिलाधिकारी के निर्देश पर सूद पर रुपये देने वाले नरियांव निवासी हरिशंकर सिंह के खिलाफ केस दर्ज हुआ था। इतना नहीं पुलिस ने मौके पर जाकर खेत भी छुड़वाया था।

उठा ले गए राशन

केस नंबर दो-

एकौना थाना क्षेत्र के बैदा कोड़र गांव के रहने वाले दुर्गा पासवान के चार बेटे परिवार लेकर अलग-अलग रहते हैं। उनका दूसरे नंबर का बेटा इंद्रजीत 35 वर्ष चेन्नई में रहकर एक कंपनी में मजदूरी करता था। एक साल पहले उसकी तबीयत खराब हो गई। वह घर लौट आया। बीमारी का इलाज कराने के लिए इंद्रजीत ने गांव के कुछ लोगों से कर्ज ले लिया। तीस हजार रुपये लिए। वह तीन बार 12-12 हजार रुपये भी जमा कर चुका है। शुक्रवार को चिट फंड कंपनी के कर्मचारी दुर्गा पासवान के घर आए और ब्याज की रकम मांगने लगे। कर्मचारी बदसलूकी करने लगे। कर्मचारी घर में रखे राशन की बोरी बाइक से उठा ले गए।

रुपये न देने पर पीटा

केस-3

देवरिया। शहर के कांशीराम आवासीय काॅलोनी निवासी विजय कुमार ने एक सूदखोर से दस हजार रुपये कर्ज लिया था। पूरा रुपये जमा करने के बाद भी वह ब्याज अधिक मांग रहा था। जब रुपये नहीं दिए तो उसने बंधक बनाकर पिटाई की थी।

वेतन मिलने के दिन बैंकों पर लग जाता है जमावड़ा

केस नंबर- चार

अक्सर देखने को मिलता है कि नगर पालिका के छोटे कर्मचारियों पर सूदखारों की जबरदस्त पकड़ है। इन कर्मचारियों को सूदखोरों ने अपने जाल में फंसा रखा है। यहां तक कि पासबुक भी अपने पास रखते हैं। जब यह माह के एक या दो तारीख को वेतन निकालने जाते हैं तो सूदखोर झोला में पासबुक लेकर पहुंच जाते हैं। एक-एक पासबुक देते हैं और बैंक पर ही ब्याज वसूल लेते हैं।

छोटे कर्ज के बड़े कारनामे, वसूली के समय अजीत शाही जैसी माफियागिरी

केवल आधार पर कार्ड पर लोन

देवरिया। जिले के लोगों की मेहनत का पचास करोड़ रुपये का भुगतान विभिन्न फाइनेंस कंपनियां दबाएं हुई हैं। इसमें एक को छोड़कर सभी के दफ्तर बंद हो चुके हैं। अब नया खेल यह हो रहा है कि माइक्रो फाइनेंस के नाम पर गांवों में अपना संजाल फैला चुकी है। अगर एक बार कर्ज ले लिया तो पूरी जिदंगी भरना पड़ेगा। इनके ब्याज का गणित कम पढ़े लिखे लोग समझ नहीं पाते हैं। जब बात वसूली की आती है तो इनकी हरकत गोरखपुर के माफिया अजीत शाही गिरोह की तरह हो जाती है।

दो से तीन दशक के बीच में जिले में कई फाइनेंस कंपनिया खुलीं और एक के बाद एक बंद होती भी गईं। इसके चक्कर में आकर करीब जिले के पचास करोड़ रुपये से अधिक लोगों की रकम डूब गई है। इनके बंद होने के बाद अन्य फाइनेंस कंपनियां विभिन्न नामों से सक्रिय हो चुकी हैं। सूत्रों के अनुसार अब फाइनेंस कंपनियां दूर-दराज के गांवों को निशाना बन रही हैं। ये कंपनियां सबसे अधिक महिला और गरीबों लोगों को कर्ज देती हैं। कर्ज देते समय यह ध्यान रखते हैं कि ऐसा व्यक्ति न हो, जिसके साथ दबंगई न चले। गरीबों को एजेंट मीठा बोलकर फंसा लेते हैं। कागजी कार्रवाई पर रुपये दे देते हैं। यहां तक केवल आधार कार्ड पर भी यह कंपनियां रुपये देने का काम कर रही हैं। 18 प्रतिशत से अधिक ब्याज वसूला जा रहा है। समूह हो या फाइनेंस कंपनियां हर माह किस्त वसूलती हैं। इसके लिए बकायदे फील्ड अफसर की नियुक्ति भी की जाती है। कर्ज देने के बाद वसूली के लिए सरकारी बैंक या निजी फाइनेंस कंपनियां मनबढ़ों का सहारा लेती हैं। इसमें यहां तक कि गोरखपुर का माफिया अजीत शाही भी है। जिसने कई बैंकों का कर्ज वसूली का ठेका ले रखा है। इसके नेटवर्क जिले में भी मौजूद हैं। इसी तर्ज पर कर्ज बांटने वाले भी मनबढ़ों को रखे हुए हैं, जो दबंगई के बल पर कर्ज और ब्याज दोनों वसूलते हैं। यहां तक बंधक बनाकर पिटाई करना और दरवाजे से जबरन वाहन भी लेकर चले जाते हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ लोग पुलिस तक पहुंचने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं।

महिलाओं का समूह बनाकर वसूलते हैं रुपये

सूदखोरों की तर्ज पर काम करने वाली चिट फंड कंपनी के कर्मचारी गांव में महिलाओं का एक समूह बनाते हैं, जिसमें से हर महिला से फार्म भराने के बाद एक पासबुक जारी कर हर महीने रकम जमा कराते हैं। समूह में सदस्य को रुपये लेने पर तीन प्रतिशत ब्याज लगता है और समूह से यदि महिला सदस्य गारंटर बनकर किसी अन्य को रकम दिलाती है तो महीने का छह प्रतिशत ब्याज लगता है। कर्जदार के रुपये नहीं देने पर कंपनी के कर्मचारी बकाएदे घरों से सामान भी उठा ले जा रहे हैं। बैदा कोड़र के इंद्रजीत ने किसी सदस्य के माध्यम से ही चिट फंड कंपनी से तीस हजार रुपये का कर्ज लिया था।

दोआबा में तेजी से फैल रहा चिट फंड कंपनी का रोजगार

एकौना थाना क्षेत्र के दोआबा में चिट फंड कंपनी का रोजगार तेजी से फैल रहा है। करीब दस कंपनी सक्रिय रूप से गांव-गांव लोगों को कर्ज देकर महीने में ब्याज वसूल रही है। गांवों में महिला समूह बनाकर चिट फंड कंपनी के झांसे में आकर जमा पूंजी गवां रही है। पिछले वर्ष रुद्रपुर कस्बा से दो चिट फंड कंपनी लोगों की जमा पूंजी लेकर फरार हो गई, मामले में जिलाधिकारी कार्यालय में शिकायत करने के बाद अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।

अभी शिकायत नहीं मिली है। अगर पीड़ित के साथ ऐसा किया गया है तो गलत है। तहरीर मिलती है तो जांच कर कार्रवाई की जाएगी।

राजेश कुमार, एएसपी

कोट

साहूकारा अधिनियम समाप्त कर दिया गया है। अगर कोई ब्याज पर रुपये देता है तो गलत है। ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है। जिले में किसी को भी सूद पर रुपये देने का अधिकार नहीं है।

नागेंद्र कुमार, एडीएम वित्त

कोट

जब तक सरफेसी अधिनियम 2002 के तहत 13- 2 और 13- 4 की नोटिस दी जाती है। इसके बाद वाहन को सीज कर सकती है और मकान को कब्जा में लेकर बेच सकती है। रिकवरी करने का भी समय है। सुबह नौ से शाम छह बजे तक है। नियम है कि फोन से भी धमकी नहीं देंगे। समझा कर ही प्रयास किया जा सकता है। जो रिकवरी कराने वाले व्यक्ति के पास इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ बैंकिंग एंड फाइनेंस के प्रमाण प्राप्त होना चाहिए। गुंडई के बल पर वसूली नहीं कर सकते है।

अरुण कुमार राव, बैंक विधिक सलाहाकार

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