सोनभद्र जिले के उत्तर मोहल में होलिका दहन की 125 साल परंपरा है प्राचीन

Uncategorized उत्तर प्रदेश सोनभद्र

सफल समाचार गणेश कुमार 

सोनभद्र जिले के उत्तर मोहल में होलिका दहन की 125 साल परंपरा है प्राचीन

-होलिका की स्थापना का शुभारंभ व्यवसायी प्यारेलाल ने किया था।

-दुर्गेश्वर धाम, कुआं का निर्माण कराया था इसरी साव ने।

-आज भी कायम है यहां पर सांस्कृतिक एवं साहित्यिक परंपरा।

सोनभद्र-वर्तमान जनपद मुख्यालय सोनभद्र नगर (रॉबर्ट्सगंज) मंदिर बाहुल्य उत्तर मोहल में होलिका दहन की परंपरा लगभग 125 साल प्राचीन है। इस परंपरा की शुरुआत स्थानीय निवासी व्यवसायी, समाजसेवी प्यारेलाल ने किया था।सन् 1846 में मिर्जापुर के उप जिलाधिकारी डब्लू०वी० रॉबर्ट्स द्वारा रॉबर्ट्सगंज नगर की स्थापना के पश्चात वर्तमान अदालगंज के निवासी जगन्नाथ साहू को नगर का प्रथम नागरिक बनाया गया था। नगर को विकसित करने के उद्देश्य से अदालगंज के निवासियों को यहां पर भूमि उपलब्ध कराया गया, ताकि अदालगंज के निवासी अपना दुकान खोलकर व्यवसाय कर सके।कालांतर में बढ़ती हुई आबादी मिर्जापुर जनपद के स्थानीय निवासियों के आगमन, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की स्थापना आदि के कारण यहां पर संस्कृतिक , साहित्यिक गतिविधियां आरंभ हुई, इस श्रृंखला में होली मनाए जाने की परंपरा का शुभारंभ हुआ।इतिहासकार दीपक कुमार केसरवानी के अनुसार-” नगर स्थापना के पूर्व अदलगंज ही इस क्षेत्र का एकमात्र कस्बा था और बसंत पंचमी के अवसर पर नगर के मुखिया भूरालाल द्वारा निर्मित बरैला मंदिर पर पर बसंत पंचमी, महाशिवरात्रि, रंगभरी एकादशी को विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक एवं साहित्यिक कार्यक्रम (झांकी, मेला, भजन, कीर्तन, फाग गीत) का आयोजन कराया जाता था।नवनिर्मित नगर की स्थापना के पश्चात बसंत पंचमीके दिन उत्तर मोहाल के सब्जी मंडी वाले नुक्कड़ पर होलिका स्थापित करने की परंपरा का शुभारंभ व्यवसायी प्यारेलाल ने किया किया। होलिका स्थापना के दिन से ढोलक, हारमोनियम, झांझ, ढपली की धुन पर फाग गीतों का गायन का आरंभ हो जाता था स्थानीय महिलाएं दिन में और पुरुष अपने व्यवसाय से फुर्सत पाने के पश्चात पर भगवान शंकर, माता पार्वती, मर्यादा पुरुषोत्तम राम, माता सीता, योगेश्वर श्रीकृष्ण, राधा पर आधारित श्रृंगार, प्रेम रस पर आधारित भजन एवं होली के गीत गाते थे। होलिका दहन वाले दिन स्थानीय निवासी होलिका के चारों ओर आम के टल्लो से सजाते थे और स्वयं अपने हाथों से होलिका की पूजा कर होलिका दहन करते थे। दूसरे दिन होलिका की राख उड़ाकर होली खेलते थे, उस समय पानी में घोलने वाला रंग उपलब्ध नहीं होता था, रंग बनाने की तैयारी स्त्रियां पहले से ही शुरू कर देती थी, टेशु के फूल से पीला,गुड़हल के फूल से लाल, पत्तियों से हरा रंग, हल्दी से पीला रंग तैयार करती थी इस प्राकृतिक रंग से लोग होली खेलते थे।उस समय समय नगर पीने की पानी का अभाव था, स्थानीय निवासियों को दूर दराज से पीने की पानी ले आना पड़ता था, इस समस्या के निदान के लिए नगर के व्यवसायी इसरी साव ने लोक कल्याणार्थ कुआं, दुर्गेश्वर महादेव धाम स्थापित कराया। यह मंदिर स्थानीय जनों के साहित्यिक सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बन गया।बसंत पंचमी, शिवरात्रि, रंगभरी एकादशी आदि पर्वों पर पूजा, अनुष्ठान, लोकगीत, फाग गीत का आयोजन किया जाने लगा। होलिका दहन के पश्चात दूसरे दिन स्थनीजन मंदिर पर सामूहिक रूप से होली खेलते थे एवं शाम को ठंडाई, गुझिया, पापड़, मालपुआ आदि लचीज व्यंजनों का आनंद लेते थे, इस कार्यक्रम में केदार साव, शिव शंकर प्रसाद, किशुन साहू, प्रयाग प्रसाद, छटंकी साव, रामधनी मास्टर, वंशमन साहू आदि लोगों का योगदान रहता था।नगर विकास की ओर अग्रसर था, मिर्जापुर जनपद के तमाम वैश्य व्यापारी व्यवसाय के उद्देश्य यहां पर बस गए थे, सन् 1854 में कुसाचा तहसील जो शाहगंज में संचालित था, वह नगर के नवनिर्मित तहसील भवन में संचालित होने लगा जिससे राजकीय कर्मचारी के निवास एवं अन्य क्षेत्रों के लोगों की आवाजाही बढ़ने के कारण यहां का व्यवसाय उन्नत हुआ, इसी वर्ष नवनिर्मित नगर का नामकरण संस्थापक डब्बू ०वी०रॉबर्ट्स के नाम पर रॉबर्ट्सगंज हो गया।कालांतर में मिर्जापुर के निवासी रामसूरत ठेकेदार के सहयोग से होली का रंगारंग कार्यक्रम स्थानीय जनों में लोकप्रिय हुआ।वर्तमान समय में उत्तर महल में अब शिवरात्रि पर्व पर होलिका की स्थापना की जाती है, प्राचीन दुघर्देश्वर महादेव धाम वर्तमान समय में आधुनिक साज- सज्जा के साथ अपने प्राचीन इतिहास को समेटे हुए हैं। यहां पर पुरानी परंपराओं का पालन करते हुए बसंत पंचमी, शिवरात्रि, रंगभरी एकादशी को भजन कीर्तन शिव चर्चा गीतों का गायन महिलाओं द्वारा पारंपरिक रूप से किया जाता है। मंदिर के शिखर पर लहराता हुआ ध्वज श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। साथ ही साथ प्राचीन काल से चली आ रही होलिका दहन की परंपरा आज भी कायम है।आज टाड का डौर उर्फ रॉबर्ट्सगंज (सोनभद्र नगर) में सोनभद्र का मुख्यालय संचालित है नगर के उत्तर मोहल मे मां शीतला धाम, श्री संकट हरण हनुमान, दूधेश्वर धाम, काली देवी,शनि देव, राणी सती, बाल हनुमान, संकट मोचन आदि मंदिर स्थापित है इनमें से कुछ मंदिर आधुनिक और कुछ मंदिर प्राचीन है। आज भी इस क्षेत्र में साहित्यिक सांस्कृतिक परंपरा आधुनिकता के साथ कायम है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *